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नाम संकीर्तन के साथ हुआ देवउठनी ग्यारस का शुभारंभ

नाम संकीर्तन के साथ हुआ देवउठनी ग्यारस का शुभारंभ

समाज को जाग्रत करना ही देव प्रबोधिनी एकादशी का मकसद — कैलाश मंथन



गुना। अंचल में देवउठनी ग्यारस के पावन पर्व पर धार्मिक उल्लास का वातावरण रहा। नगर सहित ग्रामीण अंचलों में विभिन्न मंदिरों और भक्ति केंद्रों पर देवों को जागृत कर श्रद्धालुओं ने पूजा-अर्चना की।

विराट हिन्दू उत्सव चिंतन मंच एवं अंतर्राष्ट्रीय पुष्टिमार्गीय परिषद के जिला संयोजक कैलाश मंथन ने बताया कि देवउठनी ग्यारस के अवसर पर समाज में धर्म, सेवा और जाग्रति का संदेश देने हेतु विविध कार्यक्रम आयोजित किए गए।


चिंतन हाउस में आयोजित सत्संग वार्ता में हिउस प्रमुख कैलाश मंथन ने कहा —


> “हमारे अंतर्मन में विराजमान सुप्त देव को जाग्रत करना ही सच्ची पूजा है।

जब मानव अपने जीवन का लक्ष्य जानकर पीड़ित मानवता की सेवा में आगे आता है, तभी समाज में सच्ची जाग्रति संभव है।”



पुष्टिमार्गीय वैष्णव भक्ति केंद्रों पर रविवार, 2 नवंबर को देव प्रबोधिनी एकादशी मनाई जाएगी। दो दिवसीय कार्यक्रम का शुभारंभ भव्य दीपदान एवं हरे राम नाम संकीर्तन से हुआ। इस दौरान 12 करोड़ हरे राम नाम संकीर्तन अभियान के तृतीय चरण की शुरुआत भी की गई।


कैलाश मंथन ने कहा कि स्वयं की जाग्रति ही एक मात्र साधन है, जो देश, धर्म और समाज को सशक्त बना सकती है।


देवउठनी ग्यारस से जनचेतना जाग्रति अभियान का शुभारंभ


सेवा और संगठन ही सनातन संस्कृति की आत्मा — मंथन


विराट हिन्दू उत्सव समिति एवं चिंतन मंच के तत्वावधान में रविवार को जनचेतना जाग्रति अभियान का शुभारंभ किया गया।

समिति संस्थापक कैलाश मंथन ने बताया कि इस अभियान का उद्देश्य समाज में संगठन, सेवा और संवेदना को बढ़ावा देना है।


उन्होंने कहा कि “नर सेवा ही नारायण सेवा है। समाज के संपन्न वर्ग को आगे आकर अभावग्रस्त एवं जरूरतमंद लोगों की सहायता करनी चाहिए।”


अभियान के अंतर्गत निम्न जनसेवा कार्य किए जाएंगे —


भूखों को भोजन एवं प्यासों को पानी उपलब्ध कराना


वस्त्र वितरण एवं लावारिश शवों का अंतिम संस्कार


गौसेवा, निर्धन बालिकाओं के विवाह हेतु आर्थिक सहयोग


सामूहिक विवाह सम्मेलन, वृक्षारोपण व नाम संकीर्तन कार्यक्रम



इसके साथ ही अन्न क्षेत्र के माध्यम से नि:शुल्क प्रसादी वितरण और घर-घर तुलसी पौध वितरण अभियान भी प्रारंभ किया गया है।


कैलाश मंथन ने कहा कि तुलसी का पौधा न केवल धार्मिक श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि पर्यावरण की रक्षा के लिए सबसे उपयुक्त माध्यम भी है।


 “स्वयं की जाग्रति से ही समाज, धर्म और राष्ट्र का कल्याण संभव है।” — कैलाश मंथन

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