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सिद्धों की आराधना आत्मा की शुद्धि का साधन — अष्टान्हिका महापर्व

सिद्धों की आराधना आत्मा की शुद्धि का साधन — अष्टान्हिका महापर्व


आरोन। धर्ममय नगरी आरोन में चल रहे अष्टान्हिका महापर्व के अंतर्गत श्री 108 सिद्ध चक्र महामंडल विधान का शुभारंभ 29 अक्टूबर को ध्वजारोहण के साथ हुआ। आठ दिनों तक चलने वाला यह महापर्व नगर को भक्ति और शांति के प्रकाश से आलोकित कर रहा है।


पूरे नगर में धार्मिक उल्लास का वातावरण है। जैन समाजजन श्रद्धा और भक्ति भाव से आराधना कर पुण्य संचित कर रहे हैं। यह पर्व आत्मा की शुद्धि का साधन और भक्ति, श्रद्धा तथा आध्यात्मिकता का अद्भुत संगम है।


मुनि श्री 108 दुर्लभसागर जी महामुनिराज के मंगल चातुर्मास में आयोजित इस विधान के द्वितीय दिवस पर विशेष शांतिधारा अभिषेक के साथ सिद्धों की आराधना सम्पन्न हुई। कार्यक्रम वर्धमान कॉम्प्लेक्स में विधानाचार्य राज किंग भैया जी के निर्देशन में संपन्न हुआ।


भैया जी ने प्रवचन में कहा कि —


> “हमें सिद्धों को लोकोत्तम द्रव्य ही समर्पित करना चाहिए। हम जो अर्घ्य अर्पित करते हैं, वह साक्षात तीन लोक के नाथ सिद्ध भगवान को अर्पित होता है। दान और धर्म से अर्जित पुण्य ही हमारे साथ जाता है, जबकि सांसारिक धन-संपत्ति यहीं रह जाती है। इसलिए संयम और साधना से जीवन को सार्थक बनाना चाहिए।”


आज के शांतिधारा के पुण्याजक रहे —


मुन्नालाल, प्रवीण, नीतेश झंडा परिवार; कमलेश कुमार, मनीष कुमार (हाजीपुर परिवार); तथा प्रकाशचंद, तरुण कुमार, दीपक (मोहटी परिवार)।

रात्रि स्वाध्याय पुण्याजक — धन्यकुमार, संजीव, राजीव कांसल परिवार रहे।


समस्त कार्यक्रम की जानकारी के.के. सरकार द्वारा दी गई।

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