भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापर में प्रारंभ की थी अन्नकूट परंपरा- कैलाश मंथन
अंचल में अन्नकूट महोत्सव का दौर जारी, लाखों ने ली महाप्रसादी*
भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापर में प्रारंभ की थी अन्नकूट परंपरा- कैलाश मंथन
प्राणीमात्र को तृप्ति मिले यही भावना है अन्नकूट महोत्सव की
गुना। अन्नकूट महोत्सव की परंपरा को महान रूप भगवान श्रीकृष्ण ने प्रदान किया। पांच हजार वर्ष पूर्व भगवान श्रीकृष्ण ने श्री गोवर्धन पूजन के समय अन्नकूट प्रसादी की परंपरा ब्रजधाम में कायम की थी। अंचल में पुष्टिमार्गीय केंद्रों सहित करीब आने को स्थानों पर विशाल अन्नकूट संपन्न हुए। अंतर्राष्ट्रीय पुष्टिमार्गीय वैष्णव परिषद के प्रांतीय प्रचार प्रमुख कैलाश मंथन ने अन्नकूट महोत्सव के दौरान बताया पुष्टिमार्गीय परंपरा में अन्नकूट महोत्सव के तहत 56 प्रकार के व्यंजनों का भोग प्राणी मात्र को लगाया जाए। प्रत्येक प्राणी को सहज सुलभ रूप से जीवन में सभी प्रकार के भोजन पदार्थ मिले, अभावग्रस्त कोई न रहे, सभी को तृप्ति मिले। यही भावना भगवान कृष्ण की रही, इसीलिए पाखंडवाद, ढोंग आदि धर्मों का निषेध करते हुए श्री गिर्राज पूजन किया जाता है। सभी प्राणियों की सुख, शांति की कामना करते हुए दीपावली से दशमी तक विभिन्न प्रकार के व्यंजनों के जरिये प्रत्येक प्राणी के ह्दय में बैठे भगवान को भोग लगाया जाता है। विराट हिन्दू उत्सव समिति एवं पुष्टिमार्गीय परिषद के जिला संयोजक कैलाश मंथन ने बताया भगवान को लगाए जाने वाले भोग की बड़ी महिमा है। इनके लिए 56 प्रकार के व्यंजन परोसे जाते हैं, जिसे छप्पन भोग कहा जाता है। यह भोग रसगुल्ले से शुरू होकर दही, चावल, पूरी, पापड़ आदि से होते हुए इलायची पर जाकर खत्म होता है।अष्ट पहर भोजन करने वाले बालकृष्ण भगवान को अर्पित किए जाने वाले छप्पन भोग के पीछे कई रोचक कथाएँ हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि यशोदाजी बालकृष्ण को एक दिन में अष्ट पहर भोजन कराती थी। अर्थात्–बालकृष्ण आठ बार भोजन करते थे।
जब इन्द्र के प्रकोप से सारे व्रज को बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाया था, तब लगातार सात दिन तक भगवान ने अन्न जल ग्रहण नहीं किया। आठवें दिन जब भगवान ने देखा कि अब इन्द्र की वर्षा बन्द हो गई तब सभी व्रजवासियों को गोवर्धन पर्वत से बाहर निकल जाने को कहा, तब दिन में आठ प्रहर भोजन करने वाले व्रज के नन्दलाल कन्हैया का लगातार सात दिन तक भूखा रहना उनके व्रजवासियों और मैया यशोदा के लिए बड़ा कष्टप्रद हुआ। भगवान के प्रति अपनी अन्नय श्रद्धा भक्ति दिखाते हुए सभी व्रजवासियो सहित यशोदा जी ने 7 दिन और अष्ट पहर के हिसाब से 7X8= 56 व्यंजनो का भोग बाल कृष्ण को लगाया।छप्पन भोग इस प्रकार हैं 1.भक्त(भात), 2.सूप(दाल), 3.प्रलेह(चटनी), 4.सदिका (कढ़ी), 5.दधिशाकजा (दही शाक की कढ़ी), 6.सिखरिणी (सिखरन), 7.अवलेह (शरबत), 8.बालका (बाटी), 9.इक्षु खेरिणी (मुरब्बा), 10.त्रिकोण (शर्करा युक्त), 11.बटक (बड़ा), 12.मधु शीर्षक (मठरी), 13.फेणिका (फेनी), 14.परिष्टाश्च (पूरी), 15.शतपत्र (खजला), 16.सधिद्रक (घेवर), 17.चक्राम (मालपुआ), 18.चिल्डिका (चोला), 19.सुधाकुंडलिका (जलेबी), 20.धृतपूर (मेसू), 21.वायुपूर (रसगुल्ला), 22.चन्द्रकला (पगी हुई), 23.दधि (महारायता), 24.स्थूली (थूली), 25.कर्पूरनाड़ी (लौंगपूरी), 26.खंड मंडल (खुरमा), 27.गोधूम (दलिया), 28.परिखा, 29.सुफलाढय़ा (सौंफ युक्त), 30.दधिरूप (बिलसारू), 31.मोदक (लड्डू), 32.शाक (साग), 33.सौधान (अधानौ अचार), 34.मंडका (मोठ), 35.पायस (खीर) र36.दधि (दही), 37.गोघृत, 38.हैयंगपीनम (मक्खन), 39.मंडूरी (मलाई), 40.कूपिका (रबड़ी), 41.पर्पट (पापड़), 42.शक्तिका (सीरा), 43.लसिका (लस्सी), 44.सुवत, 45.संघाय (मोहन), 46.सुफला (सुपारी), 47.सिता (इलायची), 48.फल, 49.तांबूल, 50.मोहन भोग, 51.लवण, 52.कषाय, 53.मधुर, 54.तिक्त, 55.कटु, 56.अम्ल
अंचल में प्रतिवर्ष अन्नकूट महोत्सवों की संख्या बढ़ रही है। मंदिरों, धार्मिक केंद्रों, सामाजिक संस्थाओं एवं निजी स्तर पर अन्नकूट महोत्सव के दौरान हजारों की संख्या में लोग महाप्रसादी ग्रहण करते हैं। अकेले गुना जिले में पांच सौ से अधिक स्थानों पर विशाल अन्नकूट भंडारों में भारी संख्या में लोगों ने प्रसादी ग्रहण की। नर सेवा नारायण सेवा करके ही भगवान प्रसन्न होते हैं।
शहर के प्रमुख स्थलों पर विशाल अन्नकूट*
गुना शहर के मंदिरों एवं धार्मिक केंद्रों पर होने वाले अन्नकूट में पांच लाख से अधिक श्रद्धालु होते हैं। हनुमान चौराहा, मंडी, उदासी आश्रम, बजरंगगढ़ सहित शहर के चौधरी मोहल्ला, पठार मोहल्ला, श्रीराम कॉलोनी, भुल्लनपुरा, कैंट क्षेत्र सहित ग्रामीण क्षेत्रों एवं प्रमुख स्थालों बस्तियों में हजारों श्रद्धालु महाप्रसादी का आनंद लेते हैं। महाप्रसादीमें कड़ी, चावल,मूंग, बाजरा, सब्जियां, मालपुए, खीर, रायता, चटनी, मिठाई सहित 56 प्रकार के व्यंजनों का भोग भगवान को लगाया जा रहा है। एक अनुमान के मुताबिक शहर में पांच लाख लोग अन्नकूट प्रसादी ग्रहण करते हैं।




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