जन्म के समसय लंगोट और मरते समय कफन दोनों में नहीं होती जेब- मुनिश्री निरोग सागरजी
जन्म के समसय लंगोट और मरते समय कफन दोनों में नहीं होती जेब- मुनिश्री निरोग सागरजी
गुना- विपरीत परिस्थितियों में भी समता भाव संतोष धारण करना ही सच्चे श्रावक की पहचान है। क्योंकि जिनका संयोग हुआ है उनका नियम से वियोग होने वाला है। हमने जन्म लिया था तब सबसे पहले लंगोटी पहनी, मरने के बाद मात्र कफन उड़ाया जाता है। दोनों में जेब नहीं होती। अत: जो भी शुभ कर्म अथवा अशुभ कर्म पुण्य पाप हमने किया है वही मात्र अगले भवों में तक साथ में जाने वाला है। उक्त धर्मोपदेश नगर में चातुर्मासरत मुनिश्री निरोग सागरजी महाराज ने चौधरी मोहल्ला स्थित पाश्र्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। इस मौके पर मुनिश्री ने कहा कि सबसे पुण्यशाली तीर्थंकर भगवान होते हैं, उन्होंने चार घातिया कर्मों का तो नाश कर दिया पर चार अघातियां कर्म अभी भी शेष हैं। दुनिया में ऐसा कोई जीव नहीं है जो पुण्य अथवा पापाश्रव न करें। शुभ अशुभ संसार में होता ही रहता है। अशुभ को छोडक़र शुभ में आना होना तभी शुद्धोपयोग की भूमिका बनेगी। कितना भी पुण्यशाली जीव हो जो वह इच्छा करता है जो वह चाहता है। वह उसे नहीं मिल सकता।
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