स्लिप डिस्क(कमर दर्द) रोग से बढ़ सकता है पैरालायसिस का खतरा बचाव के लिए करे योग प्राणायाम:- योगाचार्य महेश पाल
स्लिप डिस्क(कमर दर्द) रोग से बढ़ सकता है पैरालायसिस का खतरा बचाव के लिए करे योग प्राणायाम:- योगाचार्य महेश पाल
गुना-वर्तमान समय की बदलती दिनचर्या व अस्त-व्यस्त जीवन शैली के कारण वर्तमान समय में हम विभिन्न प्रकार के रोगों से घिरते जा रहे हैं उन्हीं में से एक है स्लिप डिस्क कमर के निचले हिस्से में दर्द होना, योगाचार्य महेशपाल बताते हैं कि हर्नियेटेड डिस्क या स्लिप डिस्क रीढ़ की हड्डी में होने वाली चोट है जिसमें रीढ़ की हड्डी में हड्डियों (कशेरुक) की एक श्रृंखला शामिल होती है, जो खोपड़ी के आधार से लेकर टेलबोन तक फैली होती है। कशेरुकाओं के बीच डिस्क के रूप में जाने जाने वाले गोलाकार कुशन होते हैं, जो हड्डियों के बीच बफर के रूप में काम करते हैं और लचीले मूवमेंट को सुविधाजनक बनाते हैं। जब कोई डिस्क फट जाती है या लीक हो जाती है, तो इसे हर्नियेटेड डिस्क कहा जाता है,स्लिप डिस्क के मुख्य तीन प्रकार हैं, सर्वाइकल डिस्क स्लिप, थोरैसिक डिस्क स्लिप और लम्बर डिस्क स्लिप, सर्वाइकल डिस्क स्लिप (Cervical Disc Slip),यह गर्दन में होता है और आमतौर पर C5/6 और C6/7 कशेरुका (Vertebrae) के बीच होता है,इससे सिर के पिछले भाग, गर्दन, कंधे, बांह और हाथ में दर्द होता है,सर्वाइकल डिस्क स्लिप के लक्षणों में गर्दन में दर्द, हाथ में सुन्नता या झुनझुनी, या कंधे में दर्द शामिल हो सकता है, थोरैसिक डिस्क स्लिप (Thoracic Disc Slip) यह रीढ़ की हड्डी के मध्य भाग में होता है और T1 से T12 कशेरुका के क्षेत्र को प्रभावित करता है,इससे पीठ के मध्य और कंधे के क्षेत्र में दर्द होता है,और कभी-कभी दर्द गर्दन, हाथ, उंगलियों, पैरों, कूल्हे और पैर के पंजे तक भी जा सकता है, थोरैसिक डिस्क स्लिप के लक्षणों में पीठ में दर्द, सुन्नता या झुनझुनी शामिल हो सकती है,लम्बर डिस्क स्लिप (Lumbar Disc Slip)यह पीठ के निचले हिस्से में होता है और लम्बर क्षेत्र की कशेरुकाओं (L1 से L5) के बीच होता है, इससे पीठ के निचले हिस्से में दर्द होता है,और यह दर्द जांघ, पैर और पैर के तलवे तक भी फैल सकता है, लम्बर डिस्क स्लिप के लक्षणों में पीठ में दर्द, सुन्नता, झुनझुनी, या पैर में कमजोरी शामिल हो सकती है, स्लिप डिस्क को हर्नियेटेड डिस्क या प्रोलैप्स्ड डिस्क भी कहा जाता है,तब होती है जब आपकी रीढ़ की हड्डी के बीच के कुशन (डिस्क) का बाहरी आवरण फट जाता है और अंदर का पदार्थ बाहर निकल जाता है, जो नसों पर दबाव डाल सकता है,स्लिप डिस्क का मुख्य कारण उम्र के साथ डिस्क का घिसाव और फटना है, लेकिन चोट या अत्यधिक तनाव भी इसका कारण हो सकता है,जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, डिस्क का निर्जलीकरण शुरू हो जाता है जिससे उसका लचीलापन कम हो जाता है और वह कमज़ोर हो जाती है।समय के साथ डिस्क की रेशेदार परत में दरारें आने लगती हैं जिससे उसके अंदर का द्रव या तो बाहर आने लगता है या उससे बुलबुला बन जाता है। न्यूक्लिअस का एक भाग टूट जाता है परन्तु फिर भी वह डिस्क के अंदर ही रहता है डिस्क के अंदर का द्रव (न्यूक्लियस पल्पोसस) कठोर बाहरी परत से बाहर आने लगता है और रीढ़ की हड्डी में उसका रिसाव होने लगता हैं,हमारी पीठ हमारे शरीर के भार को बांटती है और रीढ़ की हड्डी में मौजूद डिस्क अलग-अलग गतिविधियों में लगने वाले झटकों से हमें बचती हैं इसीलिए वे समय के साथ कमज़ोर हो जाती हैं। डिस्क की बहरी कठोर परत कमज़ोर होने लगती है जिससे उसमें उभार आता है जिससे स्लिप डिस्क हो जाती है। स्लिप डिस्क चोट लगने की वजह से भी हो सकती है। अचानक झटका या धक्का लगना या किसी भारी वस्तु को ग़लत ढंग से उठाने के कारण आपकी डिस्क पर असामान्य दबाव पड़ सकता है जिससे स्लिप डिस्क हो सकती हैं,ऐसा भी हो सकता है कि उम्र के साथ आपकी डिस्क का क्षरण इतना अधिक हो गया हो कि हलके से झटके (जैसे कि छींकना) के कारण भी आपको स्लिप डिस्क हो जाए। 35 से 50 वर्षों के बीच की उम्र के लोगों को स्लिप डिस्क होने की संभावनाएं अधिक होती हैं। शरीर का ज़्यादा वज़न आपके शरीर के निचले हिस्से में डिस्क पर तनाव का कारण बनता है।कुछ लोगों को स्लिप डिस्क अनुवांशिक वजह से होती है। शरीर का अतिरिक्त वजन पीठ के निचले हिस्से की डिस्क पर अतिरिक्त दबाव डालता है,शारीरिक रूप से कठिन काम करने वाले व्यक्तियों को पीठ संबंधी समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है, विशेष रूप से बार-बार होने वाली गतिविधियों जैसे उठाने, खींचने, धकेलने, बगल की ओर झुकने और मुड़ने से, ऐसा माना जाता है कि धूम्रपान से डिस्क में ऑक्सीजन की आपूर्ति कम हो जाती है, जिससे उनका टूटना तेज हो जाता है। लंबे समय तक बैठे रहने और मोटर वाहन के इंजन के कंपन के कारण रीढ़ की हड्डी पर दबाव पड़ सकता है,नियमित व्यायाम की कमी से हर्नियेटेड डिस्क का खतरा बढ़ सकता हैं, जब स्लिप डिस्क रोग हमारे शरीर में आता तो हमारे सामने कई प्रकार के लक्षण नजर आते हैं, रीढ़ की हड्डी के किसी भी हिस्से में स्लिप डिस्क हो सकती है (गर्दन से लेकर पीठ के निचले हिस्से तक) लेकिन पीठ के निचले हिस्से में यह सबसे आम है। रीढ़ की हड्डी, तंत्रिकाओं और रक्त वाहिकाओं का एक पेचीदा जाल-तंत्र होता है। स्लिप डिस्क तंत्रिकाओं और मांसपेशियों पर और इनके आस-पास असामान्य रूप से दबाव डाल सकती है। शरीर के एक तरफ के हिस्से में दर्द या स्तब्धता होना, हाथ या पैरों तक दर्द का फैलना, रात के समय दर्द बढ़ जाना या कुछ गतिविधियों में ज़्यादा दर्द होना, खड़े होने या बैठने के बाद दर्द का ज़्यादा हो जाना,थोड़ी दूरी पर चलते समय दर्द होना,अस्पष्टीकृत मांसपेशियों की कमज़ोरी,प्रभावित क्षेत्र में झुनझुनी, दर्द या जलन। स्लिप डिस्क से जब कोई रोगी ग्रसित होता है तो उसके शरीर में कई सारे परिवर्तन आते हैं और स्लिप डिस्क कई अन्य समस्याओं को साथ में लेकर आता है जो हमारे शरीर के लिए काफी नुकसानदायक हो सकता है जिसमे,स्लिप डिस्क होने पर पीठ के निचले हिस्से में दर्द होता है, जो कभी-कभी पैरों की तरफ भी फैल सकता है। इस दर्द को सायटिका भी कहा जाता है,नसों पर दबाव पड़ने से पैरों या हाथों में सुन्नता और कमजोरी महसूस हो सकती है,स्लिप डिस्क के कारण मांसपेशियों में कमजोरी आ सकती है, जिससे गतिशीलता और दैनिक गतिविधियों को प्रभावित हो सकता है, कुछ मामलों में, स्पर्श या तापमान महसूस करने की क्षमता भी कम हो सकती है, स्लिप डिस्क मूत्राशय और आंत्र नियंत्रण को भी प्रभावित कर सकती है,अगर स्लिप डिस्क का समय पर इलाज नहीं किया जाता है, तो तंत्रिकाओं को स्थायी नुकसान हो सकता है, जिससे कमजोरी या पक्षाघात( पैरालिसिस) भी हो सकता है, स्लिप डिस्क की समस्या एवं इन सभी समस्याओं से बचाव के लिए योग प्राणायाम अति आवश्यक है योग में आसनों के द्वारा शरीर लचीला हो जाता है जिससे रीढ़ की हड्डी में आई हुई विकृतियों व स्लिप डिस्क की समस्या को दूर किया जाता है, प्राणायाम के द्वारा हम तनाव व एंजायटी से बचाव कर सकते हैं, और हमारा ब्लड सर्कुलेशन सही रहता है योग से शारीरिक व मानसिक रूप से स्वास्थ बनते हैं और हमारी इम्यूनिटी इंक्रीज होती है हम विभिन्न प्रकार के रोगों से बचे रहते हैं, इसलिए हमें हमारी दैनिक दिनचर्या में योग व परिणाम को अवश्य शामिल करना चाहिए, स्लिप डिस्क के रोगियों को विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए कि वह आगे की ओर ना झुके और कोई भी भारी कार्य न करें योग प्राणायाम का अभ्यास किसी विशेष योगाचार्य के मार्गदर्शन में ही करें जिससे आपको उसका पूरा लाभ मिल सके।
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