प्रभात फेरी के साथ नंद महोत्सव एवं तिलक आरती संपन्न
जलेबी महोत्सव के रूप में भव्यता से मनी गुंसाई जी की जयंती, पुष्टिभक्ति केंद्रों पर दो दिवसीय कार्यक्रम संपन्न
प्रभात फेरी के साथ नंद महोत्सव एवं तिलक आरती संपन्न
वि_लनाथ के प्रयासों से मुगलकाल में गौवध, वानर एवं मोर के शिकार पर प्रतिबंध लगा- कैलाश मंथन
मुगलकाल में वि_ल नाथ जी ने सनातन धर्म की रक्षा की- कैलाश मंथन
गुना शहर एवं बमोरी क्षेत्र के 127 भक्ति केंद्रों पर हुए भव्य कार्यक्रम
गुना। जिलेभर में वि_लनाथ गुंसाई की 508 वां प्राकट्योत्सव दिवस शनिवार को उमंग एवं उल्लास के साथ पुष्टिमार्गीय भक्ति केंद्रों पर मनाई गई। इस दौरान सुबह से ही गोवर्धननाथ मंदिरों, सत्संग मंडलों द्वारा कार्यक्रम आयोजित किए गए, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्घालु मौजूद रहे। अंतर्राष्ट्रीय पुष्टिमार्गीय वैष्णव परिषद के प्रांतीय प्रचार प्रमुख कैलाश मंथन ने बताया कि भक्ति केंद्रों पर सुबह से ही अखंड जाप के साथ नंद महोत्सव मनाया गया। इस दौरान भगवान को पालना झुलाने के साथ-साथ तिलक आरती की गई। जिला मुख्यालय पर भी श्रीनाथजी के मंदिर पर कार्यक्रमों का सिलसिला दिनभर चलता रहा। इस दौरान जिलेभर में भगवान श्रीनाथजी के मंदिरों में अखंड जाप, प्रभातफेरी निकाली गई। वही पालना महोत्सव व तिलक आरती आदि कार्यक्रम आयोजित किए गए, जिनमें श्रद्घालुओं ने बड़ी संख्या में हिस्सा लिया। जिले के अनेकों ग्रामों में वैष्णवजनों ने गुसांईजी की जयंती धार्मिक रीति-रिवाजों व उल्लास उमंग के साथ मनाई गई। शहर के चिंतन हाउस में भी गुंसाई जी पर केंद्रित वार्ता प्रसंग में बड़ी संख्या में वैष्णव सम्मिलित हुए।
इस मौके पर वार्ता प्रसंग में वैष्णवों के बीच अंतर्राष्ट्रीय पुष्टिमार्गीय वैष्णव परिषद के प्रांतीय प्रचार प्रमुख कैलाश मंथन ने बताया कि मुगल काल में जब सनातन धर्म पर आघात किए जा रहे थे उस समय पौष कृष्ण नवमी संवत 1572 में जन्में श्री वि_लनाथजी ने पुष्टिभक्ति के द्वारा धार्मिक क्रांति पैदा की थी। उन्होंने अकबर जैसे शासक को भी भारतीय धर्म, संस्कृति के प्रति नतमस्तक कर दिया था। बादशाह के प्रमुख नवरत्न बीरबल, तानसेन, राजा मानसिंह, टोडरमल एवं महान साहित्यकार रसखान, अष्टछाप के प्रसिद्घ कवि सूरदास एवं अन्य महाकवि श्री वि_लनाथ जी के सानिध्य में रहे व सनातन संस्कृति को संरक्षित किया। उन्होंने कहा कि वि_लनाथ के प्रयासों से मुगलकाल में गौवध, वानर एवं मोर आदि के शिकार पर प्रतिबंध लगाया गया। श्रीनाथजी सहित ठाकुरजी के अन्य सात स्वरूपों की स्थापना के बाद पुष्टिभक्ति के प्रचार के लिए सात गद्दियां अपने वंशजों के सुपुर्द की। श्री मंथन ने बताया कि गुंसाईजी के शिष्यों की गाथा 252 वैष्णवों की वार्ता में भी संकलित हैं। यह ग्रंथ उनके पुत्र गोकुल नाथ द्वारा रचित ब्रज भाषा की अमूल्य धरोहर भी माना जाता है। उन्होंने बताया कि गुसांईजी ने करीब 50 ग्रंथों, स्त्रोतों एवं टीकाओं का सृजन किया। इस मौके पर पुष्टिमार्गीय परिषद के तहत ग्राम बमोरी, फतेहगढ़ क्षेत्र, भौंरा, भिडरा, रतनपुरा, परवाह, बने, ऊमरी, लॉलोनी, बागेरी, मगरोड़ा क्षेत्र सहित जिले के मधुसूदनगढ़, कुंभराज, बीनागंज, राघौगढ़, बमोरी क्षेत्र के 127 ग्रामों में सत्संग मंडलों में हुए कार्यक्रमों में बड़ी संख्या में वैष्णवजन शरीक हुए।
गीता प्रचार अभियान को मिल रही गतिशीलता
श्री मंथन ने बताया देशव्यापी गीता प्रचार मिशन के तहत हजारों वैष्णवों परिवारों ने हमारे धर्मग्रंथ गीता, भागवत, रामायण की घर-घर में अनिवार्य रूप से स्थापना हो इस बात को प्रमुखता दिया जाना जरूरी है। कोलकत्ता, हरिद्वार, लखनऊ, इंदौर, गुना सहित 13 प्रांतों में गीता प्रचार अभियान को गतिशीलता दी गई। सवा लाख परिवारों तक जिनमें सनातन धर्म संस्कृति के महान ग्रंथ मौजूद नहीं है वहां जाकर स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया। 32 वें दौर तक कुल 32 हजार गीता नि:शुल्क वितरण की जा चुकी हैं। 33 वां दौर में गीता वितरण अभियान जारी है। वहीं देश में अब तक करीब सवा लाख नि:शुल्क श्रीमद् भगवद् गीता की प्रतियां वितरित की जा चुकी हैं।




कोई टिप्पणी नहीं