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रामकथा महोत्सव के तीसरे दिन मनाया गया भगवान श्री राम का जन्मोत्सव

रामकथा महोत्सव के तीसरे दिन मनाया गया भगवान श्री राम का जन्मोत्सव


चंदेरी-भगवान श्रीराम ने अपने उत्कृष्ट आचरण से अखिल विश्व को मानवता, प्रेम तथा पारिवारिक एवं सामाजिक मर्यादा का संदेश दिया। सत्य से विचलित मानवता को युग-युगांतर तक सही मार्ग दिखाता रहेगा श्री रामचरित मानस। चंदेरी के फतेहाबाद   में रामवलि चौबे द्वारा कराई जा रही नौ दिवसीय संगीतमय श्रीराम कथा के तीसरे दिन राम जन्मोत्सव मनाया गया। इस मौके पर मौजूद श्रद्धालु भगवान श्रीराम सहित चारों भाईयों के जन्म कथा का श्रवण कर झूम उठे। श्रीराम जन्म भूमि अयोध्या से आए कथा वाचक परम पूज्य प्रभंजनानन्द महाराज ने राम जन्म प्रसंग की ऐसी व्याख्या की कि श्रोता भावविभोर हो उठे।उन्होंने कहा की कथा में हम बैठे है यह महत्वपूर्ण नहीं है महत्वपूर्ण यह है की कथा हममें उतर रही है की नहीं।कथा वाचन के दौरान महाराज जी ने कहा कि तीन कल्प में तीन विष्णु का अवतार हुआ है और चौथे कल्प में साक्षात भगवान श्रीराम माता कौशल्या के गर्भ से अवतरित हुए है। श्रीराम जन्म प्रसंग से पूर्व स्वामी ने सती प्रसंग की विस्तार से व्याख्या की। उन्होंने कहा कि एक बार माता सती भगवान शंकर बिन बताए ही माता सीता का रूप धारण कर भगवान राम की परीक्षा लेने चली गई। लेकिन भगवान श्रीराम ने उन्हें पहचान कर पूछ लिया हे माता आप अकेले कहां घूम रही है। जिसे सुन माता सती संकोच में पड़ गई। लेकिन भगवान शंकर ने ध्यान लगाकर सती द्वारा भगवान श्रीराम की परीक्षा लेने की बातें जान ली।जिसके बाद भगवान शंकर इस सोच में पड़ गए कि सती माता सीता का रूप धारण कर भगवान श्रीराम की परीक्षा लेने चली गई। महाराज जी ने आगे कहा कि माता सती के पिता राजा दक्ष के यहां यज्ञ हो रहा था। जिसमें शामिल होने के लिए माता सती ने भगवान से अपनी इच्छा जाहिर की थी। जिस भगवान शंकर ने माता सती से कहा कि तुम्हारे पिता ने यज्ञ में आने के लिए हमलोगों को आमंत्रित नहीं किया है। हालांकि माता-पिता, गुरु एवं मित्र के घर जाने के लिए आमंत्रण की जरूरत नहीं होती है।उन्होंने कहा कि भगवान शंकर की बात की अवहेलना कर माता सती अपने पिता राजा दक्ष के घर पहुंच गई। लेकिन यज्ञस्थल के निकट भगवान शंकर का स्थान नहीं देख क्रोध में आकर यज्ञ विध्वंस करने की नियत यज्ञ कुंड में कूदकर अपने शरीर का त्याग कर दी थी। जिसके बाद माता सती ने घोर तपस्या कार राजा हिमाचल एवं रानी मैना के घर पार्वती के रूप में जन्म ली। फिर माता पार्वती से भगवान शंकर का विवाह हुआ और दोनों कैलाश पर्वत जाकर रहने लगें। संगीतमय श्रीराम कथा सुनने के लिए प्रति दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ जमा हो रही है।

नगर संवाददाता -अभिनय मोरे 

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