पात्र पदार्थ वाचक है जबकि पात्रता गुण वाचक-मुनि श्री दुर्लभ सागर
पात्र पदार्थ वाचक है जबकि पात्रता गुण वाचक-मुनि श्री दुर्लभ सागर
आरोन-नगर में चातुर्मास कर रहे परम पूज्य मुनि 108 श्री दुर्लभ सागर जी महाराज ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा है कि किसी को गलत करते हुए देखने पर यदि आपके भाव उसका हित करने के लिए क्रोध करने के हो रहे हैं यदि भावना आपकी उसका कल्याण करने की हित करने सदमार्ग पर लाने की है तो भी आप में तीन योग्यताएं होना आवश्यक है पहली योग्यता है उस पर आपका अधिकार दूसरी योग्यता आपका पुण्य और तीसरी योग्यता सामने बाले व्यक्ति में पात्रता इन तीनों योग्यताओं के बिना आपकी भावनाएं उसके कल्याण की होते हुए भी वह आपकी बात को अनसुना कर देगा और आपकी बात का प्रतिकार करेगा मुनिश्री ने अपनी बात को विस्तार से समझाते हुए कहा है कि हम जब किसी का भला करने के उद्देश्य से उस पर क्रोध करते हैं हमारा उस पर अधिकार ना होने पर बह हमसे बोल देगा तुम कौन होते हो मुझे समझाने वाले दूसरी योग्यता पुण्य को समझाते हुए मुनि श्री ने कहा है कि आप किसी व्यक्ति पर अधिकार पूर्वक अपनी को बात समझाते हैं तब आपका पुण्य उदय में होना चाहिए जिससे बह अहोभाव आदर भाव से आपके यश कीर्ति के उदय से उसे आपकी बात सच्ची अच्छी और उपयोगी हितकारी लगे और वह आपकी बात उपदेश को स्वीकार करें यह सब आपके पुण्य से होगा तीसरी योग्यता पात्रता को समझाते हुए मुनि श्री ने कहा है कि जिस पात्र का आप हित चाहते है उसे समझा रहे हैं उस पात्र मे समझने की पात्रता भी होना चाहिए अतः पात्र व्यक्ति को ही अपना उपदेश अपनी बात समझाना चाहिए मुनि श्री ने अपनी बात को समझाते हुए कहा है कि परम पूज्य आचार्य भगवान विद्यासागर जी लाखों व्यक्तियो में से मात्र पात्र व्यक्ति को ही उपदेश देते थे और उसके सामने अपनी बात रखते थे जिसमें आचार्य श्री को पात्रता दिखती थी मुनिश्री ने उदाहरण देते हुए बताया है कि आरोन नगर में विराजमान साधिका आश्रम की हेमा दीदी गोंदिया महाराष्ट्र को आचार्य श्री ने कहा था कि आपको आरोन नगर में स्थित साधिका आश्रम में रहकर उसे संभालना है इतनी साधिकाओं मे से आचार्य श्री को पात्रता हेमा दीदी में दिखी और पात्रता देखकर ही साधिका मां को चुना अतः पात्र पदार्थ का वाचक है जबकि पात्रता गुण वाचक है अतः गुणी व्यक्ति में ही पात्रता होती है व्यक्ति के गुण ही पात्रता कहलाते है इसलिए हमें सदैव उसका ही हित सोचना चाहिए जिस पात्र में पात्रता हो और आपकी भावनाएं समझने के गुण हो अतः गलत होते देख क्रोध आवेशित होने पर भी हमें यह तीनों योग्यताएं देखने के बाद ही उसका हित करने को सोचना चाहिए हित करने की भावना से क्रोधित होने से पहले हमें आत्म निरीक्षण करना चाहिए कि आपके अधिकार पुण्य के साथ सामने बाले व्यक्ति में पात्रता है अथवा नही समस्त प्रवचन संबंधी प्रवचन संबंधी कार्यक्रम की जानकारी के के सरकार द्वारा दी गयी
कोई टिप्पणी नहीं