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जीवन की पॉलिसी बहते जल जैसी प्रिंसीपल चट्टान की तरह- मुनि श्री दुर्लभ सागर

जीवन की पॉलिसी बहते जल जैसी प्रिंसीपल चट्टान की तरह- मुनि श्री दुर्लभ सागर  


                

आरोन- नगर में चातुर्मास कर रहे परम पुज्य मुनिश्री 108 दुर्लभ सागर जी महाराज ने धर्म सभा में कहा आपको अपने जीवन में सभी से आत्मीयता बाले सम्बंध स्थापित करने के लिये एक सुत्र पर जीवन मे कार्य करना होगा ये सुत्र है पॉलिसी जीवन में सदैव बहते जल जैसी होनी चाहिए जिसमे सदैव आगे बढना लक्ष्य तक पहुंचना अच्छे बुरे राग द्घोष रहित सभी को समाहित करना सभी को अपनाना और जीवन का सिद्धांत प्रिसिंपल चट्टान की तरह होना चाहिए अपनी बात को विस्तार से समझातें हुए मुनि श्री ने कहा कि हमारे जीवन का हमारा प्रिसिंपल सिद्धांत एक ही होना चाहिए अड़िग चट्टान की तरह जिसे कोई हिला भी ना सके कितने भी बैर भाव के बाद भी हमें किसी से भी राग द्धोष नहीं रखना है जीवन में किसी के प्रति बैर भाव अपराध अहंकार नही रखते हुए हमे इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए हमें कैसी भी रीति नीति परिस्थितियों के साथ पॉलिसी कैसी भी अपनाना पड़े लेकिन सिद्धांत जीवन का चट्टान की तरह  बैर भाव क्रोध राग दोष रहित आत्मीय संबंधों वाला जीवन सभी के प्रति हो यही सिद्धांत होना चाहिए जिस प्रकार बहता हुआ जल किसी भी रीति नीति से अपने लक्ष्य तक पहुंचता है अपने रास्ते मे आने बाली अच्छी बुरी गंदगी को छोड़ते हुएं अपने में सभी को समाहित कर करते हुये आगे अपने लक्ष्य तक बढ़ता है इसी तरह हमें भी अपने जीवन में निष्कपट अंहकार अपराध मुक्त जीवन जीना है जीवन में दुखी होने का कारण खुद को उपेक्षित तिस्कारित करते हुए सम्मान ना मिलना है संसार का प्रत्येक प्राणी ताली प्रशंसा सम्मान चाहता है जब तक हमें ताली सम्मान यश मिलता है हम खुश होते है खुशी के कारण अहंकार आता है  इस सम्मान से  हमारे अंदर का पुष्ट होता है जब तक हमे सम्मान मिलता रहता है मन की संतुष्टि के कारण  मनुष्य के अंहकार की पुष्ठि होती रहती है लेकिन जब उसकी उपेक्षा तिरस्कार होता है उसे सम्मान नही मिले तब  उसका यही अहंकार टुटने लगता है और टुटा हुआ अंहकार अपराध में बदल जाता है जिससे बह क्रोध में रहने लगता है यही उसके दुखी होने का कारण उसके अहंकार का टुटना है जीवन में पल पल पर आपको अहम पर चोट पहुंचाने बाले आपके अंहकार को तोड़ने बाले मिलते रहेंगे ऐसे प्रसंग आपके जीवन मे नित्य आयेंगे अतः आपको हमें इन प्रसंग से विचलित ना होते हुएं अपने प्रिसिंपल सिद्धांत अपने लक्ष्य पर चट्टान की तरह अड़िग रहना है अहंकार को तोड़ने बालों को बहते जल बाली पॉलिसी  की तरह अपने जीवन के साथ समाहित करना है उनका अपने जीवन में  तालमेल बिठाना है अपनी बुद्धि को निर्मल अपराध अहंकार रहित रखना है अतः हमें जीवन पॉलिसी बहते जल बाली और जीवन का सिद्धांत चट्टान की तरह अड़िग रख कर राग द्घोष बैर भाव रहित सभी परिस्थितियों सभी के प्रति समता के भाव बाला रखना है जीवन से धीरे धीरे राग दोष कम करते जाना है अहंकार की पुष्टि से खुश नहीं होना और अहंकार टुटने से अपराध बोध से ग्रसित होकर क्रोध राग द्धोष बैर भाव नही रखना है मुनिश्री के चातुर्मास अतंर्गत आगामी शरद पूर्णिमा पर आचार्य श्री विधासागर जी महाराज का जन्म दिवस सात अक्टुम्बर को महा महोत्सव के रूप में विशेष प्रस्तुति  गाथा एक दुर्लभ महासंत की कें साथ मनाया जायेगा समस्त जानकारी के के सरकार द्वारा दी गयी

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