Breaking News

जो भक्त रथ को खींचते हैं उन्हें सौ यज्ञों का फल प्राप्त होता है- कैलाश मंथन

पुष्टिमार्गीय केंद्रों पर रथ यात्रा के द्वितीय दिवस पुष्य नक्षत्र में हुए भव्य आयोजन

सनातन धर्म की एकता एवं भारतीय संस्कृति का विराट स्वरूप है जगन्नाथ रथ यात्रा-कैलाश मंथन

श्रीनाथजी के मंदिर में ठाकुर जी ने रथ पर विराजमान होकर भक्तों को दर्शन दिए

जो भक्त रथ को खींचते हैं उन्हें सौ यज्ञों का फल प्राप्त होता है- कैलाश मंथन


गुना। श्री जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा महोत्सव के तहत द्वितीय दिवस शनिवार को अंचल के पुष्टिमार्गीय केंद्रों एवं श्री गोवर्धन नाथ जी के मंदिर एवं 127 सत्संग मंडलों में शनिवार को विशेष मनोरथ एवं उत्सव आयोजित किए गए। अंतर्राष्ट्रीय पुष्टिमार्गीय वैष्णव परिषद के प्रांतीय प्रचार प्रमुख कैलाश मंथन ने बताया प्रदेश एवं अंचल के सभी वैष्णव मंदिरों  पुष्य नक्षत्र में रथयात्रा पर विशेष मनोरथ हुए। ठाकुर जी को रथ में विराजमान किया गया। शहर के श्री नाथ जी ,गोवर्धन नाथ जी के मंदिर में, पुष्टिमार्गीय सनातन संस्कृति के केंद्रों पर रथयात्रा उत्सव के तहत संकीर्तन, सत्संग आयोजित की गई। इस अवसर पर बड़ी संख्या में वैष्णव जन उपस्थित रहे श्री ठाकुर जी चार बार महा आरती हुई एवं विशेष महाप्रसादी वितरित की गई।

इस अवसर पर  सत्संग सभा में पुष्टिमार्गीय वैष्णव परिषद के जिला संयोजक एवं प्रांतीय प्रचार प्रमुख कैलाश मंथन ने जगन्नाथ रथयात्रा पर  प्रकाश डालते हुए कहा कि आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में निकलने वाली भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का वर्णन पद्म पुराण, ब्रह्म पुराण, स्कंद पुराण,नारद पुराण तथा अन्य कई धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। मान्यता है कि इस रथ यात्रा के दर्शन मात्र भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जो भक्त इस रथ को खींचते हैं उन्हें सौ यज्ञों के समान पुण्य की प्राप्ति होती है। पुष्टिमार्ग में रथ यात्रा महोत्सव पुष्य नक्षत्र में ही मनाया जाता है।पद्मपुराण के अनुसार भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से प्रांरभ होती है और रथ यात्रा का समापन देवशयनी एकादशी के दिन होता है। श्री मंथन ने बताया कि रथ यात्रा में सबसे आगे भगवान बलभद्र का रहता है जिसे तालध्वजा कहते है इसके बाद देवी सुभद्रा का दर्पदलन रथ और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ का गरूड़ध्वज रथ चलता है। मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ हर साल अपनी मौसी के घर गुण्डीचा की यात्रा पर अपने भाई-बहन के साथ जाते हैं और यहां सात दिन विश्राम करके घर लौटते हैं। रथ के निर्माण में किसी प्रकार के कील, पेंच या धार दार वस्तु का प्रयोग नहीं होता है। रथ को खीचंने के लिए रस्सों का प्रयोग किया जाता है। भगवान जगन्नाथ के में रथ 16 पहियों लगे होते हैं और इसकी ऊचांई 45 फीट होती है। रथ के ऊपर हनुमान जी और नरसिंह भगवान के प्रतीक चिन्ह बने रहते हैं। रथ पुरी के जगन्नाथ धाम से निकल कर 3 किलो मीटर दूर गुण्डीचा बारी जाते हैं, जहां भगवान जगन्नाथ सात दिन विश्राम करके एकादशी की तिथि पर वापस घर लौटते हैं। मान्यता है कि जो भी भक्त श्रद्धाभाव से रथ को खीचंता है उसे सौ यज्ञों के समान फल की प्राप्ति होती है। द्वितीय दिवस शनिवार को शहर के श्रीनाथ जी मंदिर में भगवान कृष्ण, बलरामजी एवं सुभद्रा जी को लेकर विशेष कथा वार्ता संपन्न हुई। विराट हिन्दू उत्सव समिति के प्रमुख कैलाश मंथन ने कहा कि श्री जगन्नाथ रथ यात्रा भारतीय संस्कृति का प्रमुख अंग है।  करोड़ों सनातन धर्मियों, हिन्दू समाज की धार्मिक, सांस्कृतिक एकता की विरासत है श्री जगन्नाथ रथ यात्रा। हम अपने अतीत के गौरव को पहचान कर देश धर्म एवं समाज की सेवा में अपना जीवन अर्पित करें।  इस अक्षर पर भगवान कृष्ण का संदेश एवं श्रीमद् भागवत गीता का निशुल्क वितरण किया गया।

अ.पु. मार्गीय वैष्णव परिषद के प्रांतीय प्रचार प्रमुख कैलाश मंथन ने बताया कि क्षेत्र में करीब 150 धार्मिक केंद्रों, ग्रामों, सत्संग मंडलों, मंदिरों में रथ यात्रा उत्सव आयोजित हुए। गुना जिले के बमोरी, राघौगढ़, बीनागंज, गुना क्षेत्र में हजारों भक्तों ने रथ रथ यात्रा महोत्सव में ठाकुर जी के दर्शन किए। अंचल के परवाह, लालोनी, कॉलोनी, ऊमरी, भिडरा, मगरोड़ा, बने, पांचोरा,मधुसूदनगढ़, राघोगढ़  ,बमोरी अंचल  सहित क्षेत्र के महत्वपूर्ण   भक्ति केंद्रों पर रथ यात्रा महोत्सव के तहत विशेष मनोरथ संपन्न 

कोई टिप्पणी नहीं