युग परिवर्तन कारी व्यक्तित्व है देवर्षि नारद का -कैलाश मंथन
युग परिवर्तन कारी व्यक्तित्व है देवर्षि नारद का -कैलाश मंथन
आसुरी शक्तियों का अंत करने में अग्रणी रहे देवर्षि नारद - कैलाश मंथन
चिंतन विचार गोष्ठी में जयंती पर देवर्षि नारद को याद किया
पत्रकारिता के पुरोधा स्तंभ हैं देवर्षि नारद- कैलाश मंथन
गुना। आसुरी शक्ति का अंत करने में देवर्षि नारद की भूमिका हमेशा अग्रणी रही है। पौराणिक युग में पत्रकारिता के पुरोधा व्यक्तित्व माने जा सकते हैं देवर्षि नारद। विराट हिंदू उत्सव समिति ,चिंतन मंच एवं अंतर्राष्ट्रीय पुष्टिमार्गीय वैष्णव परिषद मध्य प्रदेश के तहत श्री नारद जयंती पर आयोजित चिंतन वार्ता गोष्ठी में देवर्षि के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विचार विमर्श हुआ। चिंतन हाउस में आयोजित गोष्ठी को संबोधित करते हुए चिंतन मंच के संयोजक विराट हिउस प्रमुख कैलाश मंथन ने कहा कि श्रीमद् भगवद् गीता में भगवान कृष्ण ने दसवें अध्याय के 26 वें श्लोक में अपनी विभूति बतलाते हुए कहा कि 'देवर्षीणां च नारद' देवर्षियों में नारद हूं। दरअसल देवर्षि नारद पौराणिक काल में पत्रकारिता के आदि देव एवं पुरोधा पुरूष कहे जा सकते हैं। भारतीय पौराणिक इतिहास में देवर्षि नारद ही एकमात्र ऐसे व्यक्तित्व हैं जो युग परिवर्तनकारी हैं। जब भी असुरों, दानवों एवं राक्षसों का अत्याचार और आतंक बढ़ा है सृष्टि एवं मानवता की रक्षा के लिए देवर्षि नारद उद्यमशील रहे। चिंतन हाउस में विचार वार्ता प्रसंग में देवर्षि नारद के वृहद स्वरूप पर प्रकाश डाला गया। समाजसेवी कैलाश मंथन ने चिंतन गोष्ठी में कहा, देवर्षि का एक ही व्रत है, जीव मात्र का कल्याण। वे पत्रकारिता के आदि देव भी कहे जा सकते हैं। जो जैसा अधिकारी है, उसे वैसे ही मार्ग पर लगा देते हैं। पुराणों में नारदजी के जन्म के संबंध में कई कथाएं उपलब्ध होती है। प्रहलाद जी जब माता के गर्भ में थे, तभी गर्भस्थ बालक को लक्ष्य करके देवर्षि ने हिरण्यकशिपु की पत्नी कयाधु को भगवन्नाम-यश-कीर्तन का उपदेश किया था। उसी ज्ञान के कारण प्रहलाद को भगवान की सत्ता में परम विश्वास हुआ था। अंत में दैत्याधिपति हिरण्यकशिपु का संहार हुआ। इसी प्रकार ध्रुव जब सौतेली माता के वचनों से रुठकर वन में तप करने जा रहे थे तब मार्ग में उन्हें नारदजी मिले। नारदजी जैसे महान गुरु से मंत्र दीक्षा लेकर ध्रुव ने अचल परम पद प्राप्त किया। श्री रामायण एवं श्रीमद् भागवत जैसे महान ग्रंथों की रचना महर्षि वाल्मिकी एवं वेद व्यासजी ने देवर्षि नारदजी के मार्गदर्शन में ही की। पुराण संहिता की परंपरा में नारायण एवं ब्रह्माजी के बाद ही नारदजी का स्थान है। विराट हिन्दू उत्सव समिति के प्रमुख कैलाश मंथन ने कहा सभी शास्त्रों के ज्ञाता नारदजी हैं। भक्ति का विश्वव्यापी प्रचार करना इनका लक्ष्य है। नारदजी ने अनेकों महानग्रंथों की रचना की है जिसमें नारद स्मृति, नारद पुराण (25 हजार श्लोक), नारद भक्ति सूत्र, नारद पांचरात्र आदि मुख्य हैं। नारदजी सदा घूमते रहते हैं वे भागवत धर्म के प्रधान आचार्यों में हैं। ब्रह्माजी के मानस पुत्र देवर्षि नारदजी का देवता, दैत्य सभी सम्मान करते हैं। सबका उन पर विश्वास है, सब उनसे सम्मति पाने को उत्सुक रहते हैं। देवर्षि नारद संगीत विद्या, ज्योतिष, आयुर्वेद, नीति, पत्रकारिता आदि के भी मुख्य आचार्य हैं। इस अवसर धार्मिकजनों एवं कार्यकर्ताओं ने देवर्षि नारद की पूजा अर्चना कर श्रद्धा सुमन अर्पित किये। कार्टून का संचालन विवेक किशोर गर्ग ने किया।
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