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सनातन धर्म की रक्षा के लिए अवतरित हुए थे महाप्रभु जी- कैलाश मंथन

वल्लभाचार्यजी के 548वें प्रकटोत्सव पर पुष्टिभक्ति केंद्रों पर भव्य कार्यक्रम संपन्न, निकली प्रभात फेरी*

सनातन धर्म की रक्षा के लिए अवतरित हुए थे महाप्रभु जी- कैलाश मंथन

डेढ़ सौ पुष्टि भक्ति केंद्रों पर हुए भव्य कार्यक्रम ,आनंद महोत्सव पालना संपन्न


गुना। पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक श्रीमद् वल्लभाचार्य जी का 548 वां प्रकटोत्सव अंचल में भव्यता एवं उत्साह से मनाया गया। इस दौरान अंचल के 150 पुष्टिभक्ति केंद्रों एवं श्रीनाथ जी के मंदिरों में विशेष मनोरथ उत्सव संपन्न हुए। गुरुवार को गुना जिला मुख्यालय में प्रात: गोवर्धन श्रीनाथ जी के मंदिर से प्रभातफेरी शहर के प्रमुख मार्गों से निकाली गई। वहीं जयंती पर प्रात: पालना महोत्सव एवं दोपहर में तिलक आरती के कार्यक्रमों में बड़ी संख्या में वैष्णवगण उपस्थित रहे। गुना एवं बमोरी अंचल के ग्रामीण क्षेत्रों में डेढ़ सौ पुष्टिमार्गीय केंद्रों, सत्संग मंडलों में संकीर्तन, बौद्धिक वार्ता प्रसंग एवं विशेष मनोरथ संपन्न हुए। इस मौके पर आयोजित बौद्धिक वार्ता प्रसंग में अंतर्राष्ट्रीय पुष्टिमार्गीय वैष्णव परिषद मप्र के प्रांतीय प्रचार प्रमुख कैलाश मंथन ने कहा कि पुष्टिमार्ग का अर्थ होता है भगवान के अनुग्रह का पथ। परब्रह्म श्रीकृष्ण भगवान का अनुग्रह ही एकमात्र साधन है। यह पुष्टिभक्ति मार्ग सब प्राणियों के लिए वर्ण, जाति, देश किसी भी भेदभाव के बिना सर्वदा तथा सर्वथा उपादेय है। भक्ति के द्वारा ही भगवान का अनुग्रह हमें प्राप्त होता है।इस मौके पर परिषद के जिला संयोजक कैलाश मंथन ने कहा कि श्रीमद् वल्लभाचार्य जी ने निराश्रय दीन जीवों के उद्धार का एकमात्र साधन पुष्टिभक्ति मार्ग को बताया। जीवात्मा और परमात्मा दोनों ही शुद्ध हैं। इसी से मत का नाम शुद्धाद्वैत पड़ा है। श्रीमहाप्रभुजी का जन्म बैशाख कृष्णा,11 वि.स. 1535, ईस्वी सन 1479 के मंगलमय दिन को रायपुर छत्तीसगढ़ के समीप चम्पारण्य में हुआ था। आपके पिता लक्ष्मण भट्ट माता इलम्मागारु तैलंग ब्राह्मण परिवार दक्षिण के कांकरवाड़ ग्राम में रहते थे। श्री महाप्रभु जी ने अपना भक्ति कर्म क्षेत्र ब्रज के गोवर्धन धाम जतीपुरा को बनाया। आपके द्वारा मुगलकाल में श्रीनाथ जी का विग्रह प्रकट हुआ जो कालांतर मेंं मारवाड स्थित उदयपुर राज्य के नाथद्वारा में वर्तमान तक स्थित है। श्री महाप्रभु जी ने तीन बार भारत भ्रमण कर 84 बैठकों में श्रीमद् भागवत का प्रचार कर दैवी जीवों पर कृपा की। मुगलकाल की विषम परिस्थितियों में सनातन धर्म संस्कृति की रक्षा की। आपने अनेकों ग्रंथों की रचना की। श्रीमद् भागवत पर सुबोधिनी जी नामक ग्रंथ में भगवत तत्व की व्याख्या की। संवत 1587 में 52 वर्ष की अवस्था में आपने आसुर व्यामोह लीला कर देह त्यागी। श्रीनाथ जी के मंदिर में श्री महाप्रभु की जयंती पर प्रात: पालना महोत्सव एवं दोपहर में तिलक आरती के कार्यक्रमों में बड़ी संख्या में वैष्णवगण उपस्थित रहे।

150 पुष्टिभक्ति केंद्रों पर आयोजन, भौंरा में हुआ भव्य कार्यक्रम*

जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में दो दिवसीय कार्यक्रम के तहत गुरुवार को श्रीमद्वल्लभाचार्य की 548 वीं जयंती मनाई गई। प्रांतीय प्रचार प्रमुख कैलाश मंदिर में बताया ने बताया इस मौके पर अष्टाक्षर मंत्र का अखंड नामजप, सुबह 5 बजे से संकीर्तन प्रभातफेरी,  प्रात: 9:30 बजे पालना महोत्सव, दोपहर 11 बजे तिलक आरती के दर्शन हुए। इस अवसर पर ग्राम भौंरा के वल्लभाश्रय सदन में महाप्रभु जी की जयंती का बड़ा कार्यक्रम संपन्न हुआ। क्षेत्र के बमोरी, फतेहगढ़, भौंरा, परवाह, बनेह, ऊमरी, कालोनी, लालोनी, भिडरा सहित ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित सत्संग मंडलों में श्रीमहाप्रभु जी की जयंती पर कार्यक्रम हुए। क्षेत्र के ऊमरी, मधुसूदनगढ़, परवाह, पांचौरा सहित अनेकों गांवों में प्रभातफेरी निकाली गई एवं संकीर्तन, वार्ता प्रसंग के कार्यक्रम आयोजित हुए।*

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