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बच्चों मैं बढ़ता चिड़चिड़ापन व तनाव एक गंभीर समस्या,निदान अनुलोम विलोम प्राणायाम:- योगाचार्य महेश पाल

बच्चों मैं बढ़ता चिड़चिड़ापन व तनाव एक गंभीर समस्या,निदान अनुलोम विलोम प्राणायाम:- योगाचार्य महेश पाल


प्राणायाम एक योग विद्या का भाग है जो प्राचीन भारत में पांचवी और छठी शताब्दी से इसका संबंध माना जाता है योगाचार्य महेश पाल विस्तार पूर्वक बताते हैं की भगवत गीता में भी प्राणायाम का उल्लेख मिलता है आज दुनिया भर में प्राणायाम किया जाता है लेकिन इसकी शुरुआत भारत से ही हुई है, मन को शांत करने के अलावा प्राणायाम अनेक रोगों खास तौर से बच्चों मैं चिड़चिड़ापन व तनाव से संबंधित समस्याओं के इलाज में भी मददगार है, अनुलोम का अर्थ होता है सीधा और विलोम का अर्थ है उल्टा। यहां पर सीधा का अर्थ है नासिका या नाक का दाहिना छिद्र और उल्टा का अर्थ है-नाक का बायां छिद्र। अर्थात् अनुलोम-विलोम प्राणायाम में नाक के दाएं छिद्र से सांस खींचते हैं, तो बायीं नाक के छिद्र से सांस बाहर निकालते है। इसी तरह यदि नाक के बाएं छिद्र से सांस खींचते है, तो नाक के दाहिने छिद्र से सांस को बाहर निकालते है।अनुलोम-विलोम प्राणायाम के अभ्यास से हम अतिरिक्त शुद्ध वायु भीतर लेते हैं और कार्बन डाईऑक्साइड यानी दूषित वायु बाहर निकाल देते हैं. इससे रक्त की शुद्धि होती है. शुद्ध रक्त हृदय के माध्यम से शरीर के सभी अंगों तक पहुँच जाता है और उन्हें पोषण प्रदान करता है. फेफड़ों की कार्यक्षमता बढ़ती है और प्राणशक्ति का स्तर बढ़ता है. बच्चों में बढ़ता तनाव एवं चिड़चिड़ापन के कारण बच्चे कई गंभीर समस्याओं से ग्रसित होते जा रहे हैं जिसमें देखा जा रहा है की, बचपन में कुछ बच्चों का स्वभाव काफी चिड़चिड़ा होता है. इस कारण वह ज्यादातर समय रोते-चीखते रहते हैं, जिद्द करते हैं और बात-बात पर गुस्सा हो जाते हैं. ऐसे बच्चों को संभालना मुश्किल होता है. पैरेंट्स कई बार गुस्से में या फिर इरिटेट होकर ऐसे बच्चों को मारते-डांटते भी हैं. कई बार बच्चे हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर का शिकार हो जाते हैं, इसलिए उनका ऐसा स्वभाव हो जाता है, हॉर्मोनल असंतुलन भी बच्चों में चिड़चिड़ेपन का कारण बनता जा रहा है. इससे कई बार बिना किसी वजह के भी बच्चे के व्यवहार में झल्लाहट नजर आ जाती है. टीनएजर्स में बहुत हाई लेवल की एनर्जी होती है पर आधुनिक जीवनशैली से आउटडोर गेम्स और फिजिकल एक्टिविटीज गायब होती जा रही हैं. ऐसे में बच्चे को अपनी एनर्जी रिलीज करने का मौका नहीं मिलता तो इसका असर गुस्से या आक्रामक व्यवहार के रूप में नजर आता है.,बच्चों में चिड़चिड़ापन 'मेल्टडाउन' के चलते आता है। मेल्टडाउन एक दिमागी प्रक्रिया के चलते होता है। छोटे बच्चों में मेल्टडाउन बहुत आम है। यह तब होता है, जब बच्चों को किसी चीज से खतरा या सुरक्षा की कमी महसूस होती है।अगर आपके बच्चे को बार-बार गुस्सा आ रहा है और हर छोटी बात पर बच्चा चिड़चिड़ेपन के शिकार होता जा रहा हैं तो यह शरीर में विटामिन और मिनरल्स की कमी से भी जुड़ा हो सकता है। सबसे अहम बात है कि माता-पिता को बच्चे को समय जरूर देना चाहिेए. उसके साथ वक़्त बिताएं और बात चीत करें.बच्चों के साथ गेम खेलें. अगर बाहर नहीं जा सकते तो घर में कैरम, लूडो, गिट्टे आर कार्ड खेले हैं. बच्चों को वीकेंड पर बाहर घुमाने ले जाएं, उनकी पसंदीदा खाने-पीने की चीजें बनाएं.बच्चों के साथ एक दोस्त की तरह भी पेश आएं. उनसे बातें पूछें और उनके गलत होने पर उन्हें प्यार से समझाएं एडवाइस करें.बच्चे सब कुछ जान लेना चाहते हैं. ऐसे में उन्हें दादी-नानी की कहानियां सुनाएं एवं उन्हे भारतीय संस्कृति व अध्यात्म से जोड़े.घर में प्यार का और खुशी का माहौल रखें.बच्चे के सामने मां-बाप प्यार से रहें. अक्सर माँ-बाप दोनों की लड़ाई में बचे शांत और गुस्सैल हो जाते हैं. बच्चों,को मोबाइल टीवी एवं वीडियो गेम सोशल मीडिया से दूर रखें और उन्हें योग व्यायाम आउटडोर गेम्स और अन्य  एक्टिविटी में इंवॉल्व करे बच्चों को शुद्ध सात्विक और पोषण युक्त भोजन दे जिससे उनका शारीरिक और मानसिक विकास हो और वह चिड़चिड़ापन से बचाव कर सके, देखने मै यह आता है की अधिकतर पेरेंट्स बच्चों के भोजन पर ध्यान नहीं देते हैं उन्हें जंक फूड  फास्ट फूड खाने से नहीं रोकते हैं और उनके स्कूल लंच बॉक्स में भी कई बार पोषण युक्त भोजन नहीं होता है जिससे बच्चा कई गंभीर समस्याओं से ग्रसित होता चला जाता है जिसमें दुबलेपन का शिकार होना ऊँचाई में ग्रोथ नहीं होना और अधिक मोटापे का शिकार हो जाना बौद्धिक विकास ना होना,  चिड़चिड़ेपन में अनुलोम विलोम प्राणायाम काफी मददगार साबित है इस प्राणायाम के अभ्यास से बच्चों के अंदर हाइपर एक्टिविटी डिसऑर्डर के शिकार होने से बचते हैं एवं हार्मोनल असंतुलन का भी खतरा नहीं रहता यह प्राणायाम ऑक्सीजन की मात्रा को बढ़ाता है और बच्चों के मस्तिष्क की कार्य क्षमता को बढ़ाकर उन्हे उधर्वगामी बनाता है, योग में बढ़ते वैज्ञानिक अनुसंधान के साथ-साथ इसके चिकित्सीय पहलुओं को भी समझा गया है। अनुलोम विलोम प्राणायाम तनाव और चिंता को कम करता है, सहानुभूति गतिविधि को दबाकर न्यूरोहार्मोनल तंत्र को ट्रिगर करके स्वायत्त कार्यों में सुधार करता है, और यहां तक ​​कि, आजकल, कई रिपोर्टों में यह पाया गया है कि योग कैंसर रोगियों के शारीरिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है। योग की ऐसी वैश्विक मान्यता भारत के बढ़ते सांस्कृतिक प्रभाव का भी प्रमाण है। एक अध्ययन से पता चला है कि तनाव के प्रति दोनों एचपीए अक्ष प्रतिक्रियाओं पर योग का तत्काल डाउन-रेगुलेटिंग प्रभाव पड़ता है। तनाव प्रबंधन के खिलाफ योग की प्रभावशीलता अच्छी तरह से स्थापित है।यह भी पाया गया कि संक्षिप्त योग-आधारित विश्राम प्रशिक्षण सहानुभूति और पैरासिम्पेथेटिक दोनों सूचकांकों को संदर्भ मूल्यों के अधिक "सामान्य" मध्य क्षेत्र की ओर विचलित करके स्वायत्त तंत्रिका तंत्र के कार्य को सामान्य करता है। अध्ययन के अनुसार  योग से लार में कोर्टिसोल  रक्त ग्लूकोज  के साथ-साथ प्लाज्मा रेनिन का स्तर, और 24-घंटे मूत्र नॉर-एपिनेफ्रिन और एपिनेफ्रिन का स्तर कम हो जाता है। योग हृदय गति और सिस्टोलिक और डायस्टोलिक रक्तचाप में उल्लेखनीय रूप से कमी आती है। इन अध्ययनों से पता चलता है कि तनाव के प्रति एचपीए अक्ष प्रतिक्रिया पर योग का तत्काल शांत प्रभाव पड़ता है। इसलिए अनुलोम विलोम प्राणायाम चिड़चिड़पन,तनाव काफी उपयोगी प्राणायाम है इसका अभ्यास करने के लिए किसी भी एक आसन का चयन करते हैं जिसमें पद्मासन, वज्रासन, सुखासन मैं बैठकर कमर गर्दन सीधी रखते हैं और धीरे-धीरे बांयी नासिका से सांस लेते हैं दांयी से छोड़ देते हैं फिर दांयी नासिका से सांस लेते हैं और बांयी से छोड़ देते हैं इस प्रकार  यह अभ्यास 10 मिनट तक दोहराते हैं इस प्राणायाम के तनाव और चिड़चिड़ापन के साथ-साथ कई और लाभ है, इससे फेफड़े शक्तिशाली होते हैं।सर्दी, जुकाम व दमा की शिकायतों से काफी हद तक बचाव होता है।,हृदय बलवान बलवान बनता है।गठिया रोग के लिए फायदेमंद है मांसपेशियों की प्रणाली में सुधार करता है।पाचन तंत्र को दुरुस्त करता है।शरीर में शुद्ध ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाता है। इसलिए बच्चों को विभिन्न प्रकार की गंभीर समस्याओं से बचाव के लिए और उनके भविष्य को अंधकार की ओर जाने से बचाए और योग प्राणायाम व सात्विक आहार बच्चों की दिनचर्या में शामिल करें

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