भागीरथ प्रयत्न से ही नदियों का पुर्नजीवन संभव- कैलाश मंथन
भागीरथ प्रयत्न से ही नदियों का पुर्नजीवन संभव- कैलाश मंथन
भागीरथ प्रयत्न से ही सुनिश्चित होती है सफलता - कैलाश मंथन
गंगा दशहरा एवं पर्यावरण दिवस पर पर पुष्टिमार्गीय केंद्रों पर पौधारोपण के साथ हुए विशेष मनोरथ एवं धार्मिक अनुष्ठान
गुना। अंचल में गंगा दशहरा एवं विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय पुष्टिमार्गीय वैष्णव परिषद मप्र, विराट हिन्दू उत्सव समिति, जन संवेदना, चिंतन मंच के तहत विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन हुआ। इस मौके पर गंगा मंदिर, पुष्टिमार्गीय केंद्रों, श्री गोवर्धनाथ मंदिर सहित अंचल के विभिन्न सत्संग मंडलों ग्रामीण क्षेत्र के परवाह, मगंरोडा , लालोनी और खराखेड़ा आदि गांवों में नाव मनोरथ विशेष गंगा एवं यमुना महोत्सव संपन्न हुए। कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए पुष्टिमार्गीय केंद्रों पर परिषद के प्रांतीय प्रचार प्रमुख कैलाश मंथन ने कहा कि भागीरथ प्रयत्नों से ही कठिन से कठिन काम की सिद्धी होती है। असंभव को संभव बनाया जा सकता है। इस अवसर पर शहर एवं अंचल के प्रमुख उद्यानों एवं स्थानों पर त्रिवेणी पीपल, बरगद, नीम, अर्जुन आदि का पौधारोपण किया गया। वहीं अंचल के शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में 30 जुलाई तक 11 हजार वृक्षारोपण का लक्ष्य रखा गया है।पर्यावरण एवं गंगा महोत्सव के अवसर पर चिंतन मंच के तहत हुए चिंतन गोष्ठियों की श्रृंखला में चिंतन हाउस पर आयोजित कार्यक्रम में हिउस प्रमुख कैलाश मंथन ने कहा कि नदियों के संरक्षण के लिए भागीरथी प्रयत्न जरूरी है। मानवता एवं सृष्टि की रक्षा के लिए भागीरथ के अथक परिश्रम से गंगा धरती पर प्रकट हुई। वर्तमान में नदियों का अस्तित्व खतरे में हैं ऐसे में जल के संरक्षण के लिए जंगलों के काटने पर प्रतिबंध, वृक्षारोपण जरूरी है। देश में हजारों भागीरथों की आवश्यकता है। जो प्रदूषित गंगा, यमुना सहित प्रमुख नदियों एवं अंचल की नदियों को प्रदूषण से मुक्त करवा सकें एवं जल स्त्रोतों को पुनजीर्वित कर सकें। श्री मंथन ने अंचल के सूखते जा रहे पानी के स्त्रोतों एवं नदियों में फैल रहे प्रदूषण पर चिंता जताई गई। गंगा दशहरा से अंचल की नदियों को पुनजीर्वित करने का आव्हान विराट हिन्दू उत्सव समिति चिंतन मंच के तहत किया गया। बौद्धिक चिंतन गोष्ठी में हिउस प्रमुख कैलाश मंथन ने केंद्र एवं प्रदेश सरकार से चिंतन ने मांग की है कि पर्यावरण के नाम पर प्रचार नहीं धरातल पर कार्य हों।
गंगा दशहरा पर पर्यावरण की गई चिंता, नदियां हो प्रदूषण से मुक्त चिंतन गोष्ठी में श्री मंथन ने कहा कि जिस प्रकार मनुष्य को जीने का अधिकार है उसी प्रकार हमारी नदियों को भी स्वछन्द होकर अविरल व निर्मल रूप से प्रवाहित होने का पूर्ण अधिकार है। नदियों को जीवनदायिनी कहा जाता है, फिर भी जगह-जगह प्रदूषित जल गंगा में प्रवाहित किया जाता है।नदियों में शौच करना, फूल और पूजन सामग्री डालना, उर्वरक, कीटनाशक, घरों, शहरों, उद्योगों, एवं कृषि से निकलने वाला अपशिष्ट जल बिना पुर्ननवीनीकरण एवं उपचारित किए विशाल मात्रा में नदियों एवं प्रकृति में प्रवाहित कर दिया जाता है, जो हमारे पर्यावरण को प्रदूषित करता है। इससे प्रकृति के मूल्यवान पोषक तत्व भी नष्ट हो रहे हैं तथा जलीय जीवन भी प्रभावित हो रहा है। अनुपचारित जल से पेचिस, टायफाइड, पोलियो जैसी बीमारियों में वृद्धि हो रही है। स्वच्छ जल, स्वच्छताच एवं स्वच्छता सुविधाओं की आवश्यकता मनुष्य के साथ जलीय प्राणियों एवं पर्यावरण को भी है।
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